प्रमुख स्त्री रोग
महिलाओं के शरीर की आंतरिक रचना पुरुषों से एकदम अलग होती है और काफी जटिल होती है । इसलिये महिलाओं में कुछ विशेष रोग होते हैं जो पुरुषों में नहीं होते । क्योकि महिलाओं को इन सब रोगों के बारे में चर्चा करने में संकोच होता है । इसलिए इन घरेलू उपायों से उन्हें काफी मदद मिल सकती है ।
रोग होने के कारण-
भोजन- गुरु, विदाही, अम्ल तथा सिरके आदि के अति सेवन से अत्यार्ताव की उत्पत्ति होती है.
अति मैथुन-
अति मैथुन के कारण महिलाओं की जन इंद्रियों की ओर रक्त प्रवाह अधिक हो जाता है जो आर्तवस्राव भी अधिक कर आता है. नवविवाहित महिलाओं में अधिक मैथुन करने से यह अवस्था उत्पन्न होती है.
गर्भपात-
प्रसव के उपरांत साधारणतया अपरा गर्भ के सब अंग बाहर निकल जाते हैं. जिससे गर्भाशय अपनी पूर्व स्थिति में आ जाता है. लेकिन जब अपरा या कुछ भाग अंदर रह जाता है तो वह अपनी पूर्व अवस्था में नहीं आता, जिससे वह मृदु एवं स्थूल हो जाता है. रक्त आदि के कारण उससे रक्त स्राव हुआ करता है. यह स्थिति प्रायः गर्भपात के कारण होती है.
यानाध्व-
घोड़ा, ऊंट, साइकिल आदि की अधिक सवारी करना, हार्वर्ड फ्रेंड्स ने नृत्य, जिमनास्टिक, साइकिल की सवारी, शिकार करना आदि इसका कारण बताया है.
शोक-
मद, काम, क्रोध, चिंता से मानसिक उत्तेजनाए होती है. इससे शरीर के अन्तःस्रावों में वृद्धि होकर रक्त भार अस्थाई रूप से बढ़ जाता है. इसके परिणाम स्वरूप गर्भाशय में रक्ताधिक्य होकर अत्यार्ताव की उत्पत्ति होती है.
आधुनिक ग्रंथकारों ने असृग्धर को रोग ना मानकर अत्यार्तव शब्द से इस लक्षण का वर्णन किया है और कारणों को अनेक भागों में बांटा है. हेनरी जिलेट ने इसके संपूर्ण कारणों को चार बड़े भागों में विभक्त किया है.
1 .प्रजनन संस्थान गत कारण-
कोई भी कारण जो गर्भाशय में रहकर वहां रक्ताधिक्य उत्पन्न करे. वह अत्यार्ताव उत्पन्न कर सकता है. जैसे गर्भाशय कलाशोथ, गर्भाशय तथा बीज ग्रंथि के अर्बुद, अपरा के अवशेष तथा गर्भाशय का हिनसंवरन, गर्भाशय का जीर्ण शोध एवं पालीपस, गर्भाशय का रिट्रोवर्शन, गर्भाशय का संकोचवर्तन तथा डिंब वाहिनी, डिंब कोषशोथ.
2 .रक्त व संस्थागत कारण-
रक्तभार की वृद्धि करने वाले सब कारण अत्यार्ताव पैदा करते हैं. जैसे वृक तथा हृदय रोग, यकृदल्युदर तथा स्वशनि शोथ, ह्रदय कपाट के रोग, उच्च रक्तचाप, धमनी दाधर्य तथा फुसफुस का एम्फीसीमा.
3 .वात नाड़ी संस्थान गत कारण-
अत्यधिक मैथुन, अतिउष्ण में स्नान तथा भावा वेश से प्रत्यावर्तन क्रिया के द्वारा अत्यार्ताव की उत्पत्ति होती है.
4 .अंतः स्रावी ग्रंथि गत कारण-
वीज ग्रंथि तथा थायराइड ग्रंथि का अत्यधिक अन्तःस्राव अत्यार्ताव को पैदा करता है.
5 .संक्रामक रोग-
आंतरिक ज्वर ( टाइफाइड ) फ्लू, स्कारलेट बुखार, मलेरिया आदि रोगों के कारण भी अत्यार्ताव हो जाता है.
6 .अन्य कारण-
नाचना, शिकार खेलना, देर तक साइकिल चलाना, अत्यधिक भय तथा उद्वेग एवं ताप का सहसा परिवर्तन भी अत्यार्ताव की उत्पत्ति का कारण हो सकता है. इसके अतिरिक्त एक अन्य प्रमुख कारण योनि गुहा की विक्षति है. अतः अत्यार्ताव के रोगी में श्रोणिगुहा की पूरी परीक्षा करनी चाहिए. अन्य कारणों में रक्त की विकृति एवं अधिक श्रम भी है. जब कोई कारण स्पष्ट रूप से ना मिले तो हार्मोन का विक्षोभ समझा जाता है. फिर भी श्रोणिगुहा के ऊतकों के अत्यंत संक्रमण का सदैव ध्यान रखना चाहिए.
श्वेत प्रदर ( ल्यूकोरिया )
महिलाओं की योनी से सफेद रंग का तरल पदार्थ निकलना ‘ श्वेत प्रदर ‘ कहलाता है । यह कभी भी निकलता रहता है तथा काफी दुर्गधं पूर्ण रहता है । इसकी वजह से शरीर में दर्द रहता है और शरीर दुर्बल भी होता जाता है ।
घरेलू उपचार
श्वेत प्रदर रोगमें कुछ घरेलू उपचार निम्न प्रकार से हैं :
प्रातः काल पके केलों का सेवन करें और दूध में 2 चम्मच शहद मिलाकर पीने से काफी आराम मिलता हैं ।
पका केला देशी गाय के घी के साथ सुबह – शाम खाने पर श्वेत प्रदर में लाभ होता है ।
4 सूखे सिघाड़े रात को पानी में भिगों दें । सुबह उन्हें पीसकर उसमें मिश्री मिलायें और खाली पेट खायें तथा गाय का दूध पीयें गाय के दूध में तुलसी का रस मिलाकर पीने से काफी लाभ होता है ।
तुलसी के रस में शहद मिलाकर सुबह – शाम चाटें ।
खाने के समय मूली का नियमित सेवन करें ।
सुखा आँवला + मुलहठी समान मात्रा में लेकर चूर्ण बनायें और सुबह – शाम शहद के साथ चाटें उसके बाद गाय का दूध पिये ।
रक्त प्रदर
मासिक धर्म या उसके अतिरिक्त समय में योनि मार्ग से अत्यधिक मात्रा में अधिक समय तक रक्त स्राव या रजःस्राव का होना असृग्धर अथवा रक्त प्रदर कहलाता है.
घरेलू उपचार
लौकी के बीजों को छीलकर घी में भूनें और मिश्री डालकर हलवा बनायें । प्रातः काल खाली पेट खायें लाभ होगा । 1/2 चम्मच अशोक की जड़ का चूर्ण शहद के साथ चाटने से रक्त प्रदर में आराम मिलता है । अशोक की छाल 100 ग्राम तथा सफेद चंदन , कमल का फूल , अतिस आँवला , नागरथोथा , जीरा , चिते की छाल 50-50 ग्राम लेकर बारीक पाऊडर बनायें अब 10 ग्राम चूर्ण को शहद के साथ मिलाकर चाटे । अरहर के पत्तों का रस पानी में घोलकर पियें मासिक धर्म की अनियमितता मैथी , गाजर और मूली के बीजों को बराबर मात्रा में लेकर बारीक पीसें तथा 1 चम्मच चूर्ण को अशोकारिष्ट , ( 1 चम्मच ) के साथ नियमित पियेंद्र अनियमितता ठीक हो जायेगी । लाल गुड़हल के फलों को कांजी के साथ पीसकर पियें । आम की सुखी पत्तियों कों आग मे जलाकर पाऊडर बनायें और पानी में घोलकर पियें बीमारी में लाभ मिलेगा । तेजपत्ता का काढ़ा पीने से काफी लाभ होता है । 1 चम्मच भूना सुहागा पानी में मिलाकर पियें मासिक धर्म की अनियमितता दूर होगी । मासिक धर्म की अधिकता 10 ग्राम सफेदा काशनगरी , 1 ग्राम लाल गेरु दोनों को मिलाकर पाउडर बनाएं और मिश्री के साथ मिलाकर पानी से पियें अधिक रक्त आने में कमी होगी । असगंध के चूर्ण को मिश्री मिलाकर पानी के साथ लेने से मासिक धर्म में आने वाले खून में कमी आयेगी ।-धनिये का काढ़ा बनायें और छानकर पिलायें । राल का महीन चूर्ण बनाकर आवश्यकतानुसार मिश्री के साथ खायें । जामुन की हरी ताजी छाल को सूखाकर पाउडर बनालें । सुबह – शाम गाय के दूध में एक चम्मच मिलाकर पियें । स्त्री विशेष